पंचायत सीजन 4 रिव्यू: गांव की गलियों से फिर दिल जीतने आई पंचायत
TVF और अमेज़न प्राइम की सुपरहिट वेब सीरीज़ ‘पंचायत’ का चौथा सीजन एक बार फिर दर्शकों के दिलों में बस गया है। जितेंद्र कुमार उर्फ अभिषेक त्रिपाठी, रघुबीर यादव, नीना गुप्ता, और चंदन रॉय जैसे कलाकारों ने एक बार फिर ग्राम जीवन की सरलता और उसकी जटिलताओं को बेहद प्रभावशाली ढंग से पेश किया है।
चौथा सीजन न सिर्फ कहानी को आगे बढ़ाता है, बल्कि इसमें गांव के बदलते सामाजिक और राजनीतिक हालातों को भी गहराई से छुआ गया है। इस रिव्यू में हम जानेंगे कि कैसे यह सीजन भी पंचayat के शानदार स्टैण्डर्ड को कायम रखता है।
कहानी की परतें: राजनीति, इमोशन और गांव की सच्चाई
पंचायत सीजन 4 की कहानी वहीं से शुरू होती है जहाँ तीसरे सीजन ने छोड़ा था — अभिषेक का तबादला और गांव के लोगों में उठते-बैठते राजनैतिक तूफान। लेकिन जैसे-जैसे एपिसोड आगे बढ़ते हैं, यह साफ हो जाता है कि पंचायत सिर्फ एक कहानी नहीं, बल्कि एक अनुभव है।
इस बार ग्राम प्रधान मंजू देवी (नीना गुप्ता) और उनके पति ब्रिजभूषण दुबे (रघुबीर यादव) की जोड़ी और भी अधिक सशक्त रूप में सामने आती है। वहीं, सचिव जी यानी अभिषेक त्रिपाठी अपने अंदर चल रही उलझनों और गांव की जिम्मेदारियों के बीच झूलता नजर आता है।
एक और अहम किरदार विकास (चंदन रॉय) इस बार ज्यादा गहराई और ह्यूमर लेकर आया है, जो कहानी में हल्के-फुल्के लेकिन असरदार पल देता है।
भावनाओं की गहराई: रिश्तों में मिठास और कड़वाहट दोनों
इस सीजन की सबसे बड़ी खासियत है उसका भावनात्मक पक्ष। अभिषेक और गांव के बीच बना जुड़ाव इस कदर गहरा हो गया है कि दर्शक खुद को उसी गांव का हिस्सा समझने लगते हैं।
हर एपिसोड में कोई न कोई ऐसा मोमेंट जरूर होता है, जो या तो आंखें नम कर देता है या चेहरे पर मुस्कान ले आता है। अभिषेक और रिंकी (सानविका) के बीच की छोटी-छोटी बातचीत दर्शकों को रोमांचित करती है। हालांकि उनका रिश्ता अभी भी अधूरा सा लगता है, लेकिन यही अधूरापन कहानी को असल बनाता है।
निर्देशन और स्क्रीनप्ले: सादगी में छिपी गहराई
दीपक कुमार मिश्रा के निर्देशन में इस बार भी वह जादू है, जो पंचायती कहानी को असल ज़िन्दगी जैसा बना देता है। स्क्रीनप्ले की सबसे बड़ी ताकत है उसकी रियलिस्टिक टोन — न कोई ओवरड्रामा, न कोई बनावटी संवाद।
संवाद ऐसे हैं जैसे हम अपने आस-पास सुनते हैं — “कुछ बात तो है इस गांव में,” “काम तो करना पड़ेगा चाहे दिल लगे या न लगे।” ये लाइनें सीधी दिल में उतरती हैं।
परफॉर्मेंस: हर किरदार ज़िंदा लगता है
जितेंद्र कुमार (अभिषेक): उनका किरदार इस सीजन में और मैच्योर हुआ है। उनके एक्सप्रेशन्स, चुप्पी, और गुस्सा — सब कुछ बेहद नैचुरल लगता है।
रघुबीर यादव (ब्रिजभूषण): राजनीति में अपने अनुभव के साथ-साथ उनके भीतर की इमोशनल साइड भी दिखाई देती है।
नीना गुप्ता (मंजू देवी): वह अब सिर्फ नाम की प्रधान नहीं रहीं, अब उनका आत्मविश्वास और समझदारी हर सीन में झलकती है।
चंदन रॉय (विकास): गांव की मस्ती और दोस्ती का असली रंग उन्हीं से आता है।
संगीत और सिनेमैटोग्राफी: गांव का रंग और गंध
पंचायत की खूबी यही है कि वह किसी बड़े बजट की सीरीज न होकर भी दर्शक को पूरी तरह बांध लेती है। गांव की गलियों, खेतों और चौपालों को कैमरा जिस सादगी से कैप्चर करता है, वह आज की हाई-फाई वेब सीरीज से अलग एक आत्मा देता है।
बैकग्राउंड म्यूजिक भी बिना ज़्यादा शोर मचाए, हर दृश्य में जान डालता है।
क्या कमी थी?
अगर कोई कमी निकालनी हो, तो शायद यही कहा जा सकता है कि कहानी थोड़ी धीमी रफ्तार से चलती है। कुछ दर्शकों को यह लग सकता है कि रोमांस और ड्रामा और भी बढ़ाया जा सकता था। लेकिन फिर यही धीमापन ही तो पंचायत की असली पहचान भी है।
निष्कर्ष: पंचायती कहानी, दिल के करीब
पंचायत सीजन 4 एक बार फिर यह साबित करता है कि सादगी में भी बहुत गहराई और दम होता है। यह सीरीज न सिर्फ गांव के जीवन की वास्तविकता को उजागर करती है, बल्कि उसमें छिपे इमोशन, राजनीति, रिश्ते और संघर्षों को भी बेहद खूबसूरती से पेश करती है।
यह सीजन देखकर ऐसा लगता है कि हम भी वहीं फुलेरा गांव में हैं — कभी हंसते हुए, कभी सोचते हुए और कभी बस चुपचाप निहारते हुए।
रेटिंग: ⭐⭐⭐⭐☆ (4.5/5)
आप इसे क्यों देखें?
असली भारत को महसूस करने के लिए
जबरदस्त परफॉर्मेंस के लिए
इमोशनल और ह्यूमर के संतुलित मेल के लिए
क्या आप तैयार हैं फिर से फुलेरा गांव लौटने के लिए? पंचायत सीजन 4 आपका इंतज़ार कर रहा है।
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